मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे तन्हाई की रातों में, दर्द की गहराइयों में खो जाता हूँ, ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो…” “रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं मेरा कौन है https://youtu.be/Lug0ffByUck